हम जल, जंगल, ज़मीन के रखवाले हैं – मध्यप्रदेश आदिवासी विकास परिषद
आदिवासी समाज इस धरती का मूल निवासी है। हमारी पहचान हमारे जंगल, हमारी नदियाँ और हमारी ज़मीन हैं। अब वक्त है कि हमारी आवाज़ हर कोने तक पहुंचे। जब हम अपने जंगलों की तरफ देखते हैं, हमें अपने पूर्वजों की आवाज़ें सुनाई देती हैं – जो कहते हैं:
"संघर्ष करते रहो, अपने हक के लिए डटे रहो।"
इसी सोच के साथ मध्यप्रदेश आदिवासी विकास परिषद कई सालों से आदिवासी समाज के अधिकारों और सम्मान के लिए काम कर रही है।
मुझे गर्व है कि मैं इस परिषद का अध्यक्ष हूँ। यह सिर्फ एक संगठन नहीं – बल्कि एक आंदोलन है। हमारी संस्कृति, हमारी अस्मिता, और हमारे अधिकारों को बचाने का आंदोलन।
आदिवासी विकास परिषद प्रदेश का सबसे पुराना और भरोसेमंद संगठन है, जिसने न सिर्फ हजारों लोगों को न्याय दिलाया, बल्कि समाज को सशक्त नेता भी दिए – जैसे कार्तिक गोंड, जमुना देवी, और कई और जिन्होंने हमारी आवाज़ संसद और विधानसभा तक पहुंचाई।
लेकिन आज भी हमारा आदिवासी समाज अन्याय झेल रहा है। कई बार सरकारें आदिवासियों को नक्सली बता कर फर्जी एनकाउंटर कर देती हैं। मीडिया में खबरें आती हैं, लेकिन ज़्यादातर लोग नजरअंदाज कर देते हैं।
सरकारें कहती हैं – “हमने अधिकार दिए हैं।”
पर क्या सिर्फ काग़ज़ पर अधिकार मिल जाने से ज़िंदगी बेहतर हो जाती है?
हम मानते हैं – जल, जंगल, ज़मीन पर पहला अधिकार आदिवासियों का है, और हमेशा रहेगा।
अब वक़्त है कि दिखावे नहीं, असली काम हो। जो चुप है, वो भी उतना ही ज़िम्मेदार है। हम चाहते हैं कि हर आदिवासी को शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोज़गार मिले – वो भी सम्मान के साथ।
अब हम सिर्फ मांग नहीं करेंगे – अब हम नेतृत्व करेंगे। हमारी परिषद हर आदिवासी युवा को आगे लाने का काम कर रही है। अब हमें “हितग्राही” नहीं, निर्णायक बनना है।
ये सिर्फ हक की लड़ाई नहीं है – ये हमारी पहचान, संस्कृति, और अस्तित्व की लड़ाई है।
“हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं – जब तक न्याय नहीं मिलेगा।”
आपका साथी,
उमंग सिंघार
अध्यक्ष, मध्यप्रदेश आदिवासी विकास परिषद