बालाघाट जिले के दुगलाई गांव में आदिवासी बेटियों के साथ हुई दुष्कर्म की घटना निंदनीय है : उमंग सिंघार
23 अप्रैल 2025 की रात बालाघाट ज़िले के हट्टा थाना क्षेत्र के दुगलाई और ठाकुरटोला के बीच चार आदिवासी बेटियों के साथ हुई सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया।" जो कुछ हुआ, उसने न केवल मेरे दिल को गहरा आघात पहुँचाया। बल्कि पूरे मध्यप्रदेश की आत्मा को भी आहत किया। चार आदिवासी बेटियों के साथ हुई इस बर्बर और अमानवीय घटना ने हम सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है — क्या हम सचमुच एक सुरक्षित और संवेदनशील समाज में जी रहे हैं?
ये सिर्फ़ एक आपराधिक मामला नहीं है। ये हमारे समाज की उस खामोशी की पोल खोलता है, जो अक्सर वंचितों, आदिवासियों और हमारी बहनों-बेटियों की चीखों को अनसुना कर देती है।
पीड़ित बहनों ने पूरी पंचायत के सामने जो साहस दिखाया, वह अद्वितीय है। उन्होंने न दबाव झेला, न लालच में आईं। उन्होंने समझौते के प्रस्ताव को ठुकराकर साफ़ कहा — "हम समझौता नहीं करेंगे, हमें न्याय चाहिए, हमें फांसी चाहिए।" यह आक्रोश, यह पीड़ा और यह आत्मसम्मान हम सभी के लिए प्रेरणा है।
जब यह समाचार मेरे पास पहुँचा, तो मैं स्वयं को रोक नहीं पाया। मैं दिनांक 30/04/2025 को तुरंत एक लंबा सफर तय करके बालाघाट के दुगलाई गाँव पहुँचा और पीड़ित बेटियों और वहाँ के 32 आदिवासी परिवारों से मिला। उनके आंसुओं में मैंने अपनी बहनों का दर्द देखा। इस दुख की घड़ी में मैंने और मेरी टीम ने निर्णय लिया कि हम केवल सहानुभूति नहीं, ठोस सहायता भी देंगे।
हमने प्रत्येक पीड़िता को ₹1-1 लाख की आर्थिक सहायता दी। ये महज़ राशि नहीं है — ये एक वचन है कि वे अकेली नहीं हैं, हम सब उनके साथ हैं। इसके साथ ही, हमने लकड़ी के अंगारों से अपना घर रोशन करने वाले 32 आदिवासी परिवारों को ₹10-10 हज़ार की सहायता दी, ताकि वे भी अपने जीवन को फिर से संवार सकें।
बालाघाट जिले के दुगलाई में हुई दुष्कर्म की घटना पर प्रेस वार्ता
प्रदेश में बढ़ते दुष्कर्म की घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए मेने प्रदेश सरकार की निष्क्रियता की आलोचना की। प्रदेश में हो रही दुष्कर्म से जुड़ी घटनाओं के चौकाने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए:
- 2024 में मध्य प्रदेश में 7,250 बलात्कार की घटनाएं: यानी हर दिन औसतन 20 बलात्कार।
- आदिवासी महिलाओं पर अत्याचार और जनजातीय क्षेत्रों में लगातार हिंसा की घटनाएं।
- अधिकतर मामलों में पुलिस FIR तक दर्ज नहीं करती।
2024 में MP में SC/ST के खिलाफ 7,700 से अधिक मामले: इनमें हत्या, बलात्कार, और बर्बरता शामिल हैं।
देश में बढ़ते दलित और आदिवासी उत्पीड़न महिलाओं के खिलाफ बढ़ते दुष्कर्म के मामलों पर सरकार की निष्क्रियता की आलोचना की। उन्होंने सवाल उठाया, "बेटी बचाओ का नारा देने वाली सरकार चुप क्यों है? मुख्यमंत्री ने आदिवासियों के लिए सहायता कोष का ताला अब तक क्यों नहीं खोला है?"
मुख्यमंत्री जी को पत्र:
इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर पीड़िताओं को त्वरित न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पांच अहम मांगें रखी गई हैं। 2 मई 2025 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी को इस मामले में तत्काल कार्रवाई की मांग करते हुए
पांच प्रमुख मांगें रखी
- फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई: मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में की जाए ताकि पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिल सके।
- विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति: एसटी अत्याचार और पॉक्सो एक्ट के मामलों में दक्ष और अनुभवी विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति की जाए।
- मुआवजा: प्रत्येक पीड़ित को न्यूनतम 1 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जाए।
- र्थिक सहायता: पीड़िताओं को कम से कम एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाए।
- सुरक्षा व्यवस्था: पीड़िताओं और उनके परिजनों की सुरक्षा के लिए गांव में स्थायी पुलिस बल तैनात किया जाए ताकि उनकी गरिमा और सुरक्षा बनी रहे।
- विशेष कार्यबल का गठन: आदिवासी और दलित महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए विशेष टास्क फोर्स का गठन किया जाए।
मुझे इस बात की पीड़ा है कि आज़ादी के 77 साल बाद भी बालाघाट के दुगलाई जैसे गाँवों में न बिजली है, न सड़क, न पानी और न रोज़गार। यह उन नीतियों की असफलता का प्रमाण है जिनका लाभ इन लोगों तक नहीं पहुँच पाया। हमने तुरंत सरकार के समक्ष दुगलाई गांव में बिजली आपूर्ति की माँग रखी। हमारी पहल रंग लाई और 4 घंटे के भीतर सरकार को बिजली आपूर्ति का निर्णय लेना पड़ा। आज उस गाँव में पहली बार बिजली का बल्ब जला। यह सिर्फ़ एक गाँव की जीत नहीं — यह इंसानियत और एकजुट आवाज़ की जीत है।
मैं यहीं नहीं रुकूँगा। प्रदेश के हर आदिवासी गांव की आवाज़ बनूंगा, जहाँ अब भी सड़क नहीं पहुँची, जहाँ महिलाएँ आज भी कई किलोमीटर दूर से पानी लाती हैं, जहाँ स्वास्थ्य केंद्र और एंबुलेंस की सुविधा अब तक एक सपना है।
मैं स्पष्ट कहना चाहता हूँ — विकास के दावों और चमकदार पोस्टरों से पेट नहीं भरता, जीवन नहीं बचता। अगर सचमुच सरकार आदिवासियों के जीवन को बदलना चाहती है, तो उन्हें कागज़ नहीं, धरातल पर उतरे योजनाएँ चाहिए।
आज बालाघाट बोल रहा है — ‘इंसानियत ज़िंदा है।’
हम चुप नहीं रहेंगे। हम हर अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाते रहेंगे। यही हमारा संकल्प है। यही हमारा धर्म है।
– उमंग सिंगार
नेता प्रतिपक्ष, मध्यप्रदेश विधानसभा